CTET HINDI QUIZ 24

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Question 1:

निर्देश- नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए:
क्‍या परिचय दूं मैं अपना
द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी
सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक
कभी गौर किया है तुमने
मेरा कोई नाम नहीं।
द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को
पिता को चाहिए था योद्धा
और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे
यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं
सबको स्‍तब्‍ध कर
खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म।
सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस
अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि,
लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही
और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने
महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं
गिडगिडाई नहीं
न मॉ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में
और न
कुरूसभा में
जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

यज्ञ की अग्नि से कौन उत्‍पन्‍न हुआ ?

निर्देश- नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: क्‍या परिचय दूं मैं अपना द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक कभी गौर किया है तुमने मेरा कोई नाम नहीं। द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को पिता को चाहिए था योद्धा और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं सबको स्‍तब्‍ध कर खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म। सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि, लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं गिडगिडाई नहीं न मॉ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में और न कुरूसभा में जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

Question 2:

निर्देश- नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए:
क्‍या परिचय दूं मैं अपना
द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी
सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक
कभी गौर किया है तुमने
मेरा कोई नाम नहीं।
द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को
पिता को चाहिए था योद्धा
और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे
यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं
सबको स्‍तब्‍ध कर
खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म।
सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस
अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि,
लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही
और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने
महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं
गिड़गिड़ाईनहीं
न माँ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में
और न
कुरूसभा में
जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

‘पिता को चाहिए कि एक योद्धा’- यहॉं किस योद्धा की बात हो रही है ?

निर्देश- नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: क्‍या परिचय दूं मैं अपना द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक कभी गौर किया है तुमने मेरा कोई नाम नहीं। द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को पिता को चाहिए था योद्धा और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं सबको स्‍तब्‍ध कर खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म। सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि, लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं गिड़गिड़ाईनहीं न माँ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में और न कुरूसभा में जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

Question 3:

निर्देश- नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए:
क्‍या परिचय दूं मैं अपना
द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी
सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक
कभी गौर किया है तुमने
मेरा कोई नाम नहीं।
द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को
पिता को चाहिए था योद्धा
और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे
यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं
सबको स्‍तब्‍ध कर
खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म।
सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस
अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि,
लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही
और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने
महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं
गिड़गिड़ाईनहीं
न माँ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में
और न
कुरूसभा में
जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

यहॉं ‘पांचाली’ से क्‍या आशय है ?

निर्देश- नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: क्‍या परिचय दूं मैं अपना द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक कभी गौर किया है तुमने मेरा कोई नाम नहीं। द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को पिता को चाहिए था योद्धा और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं सबको स्‍तब्‍ध कर खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म। सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि, लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं गिड़गिड़ाईनहीं न माँ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में और न कुरूसभा में जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

Question 4:

निर्देश- नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए:
क्‍या परिचय दूं मैं अपना
द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी
सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक
कभी गौर किया है तुमने
मेरा कोई नाम नहीं।
द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को
पिता को चाहिए था योद्धा
और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे
यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं
सबको स्‍तब्‍ध कर
खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म।
सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस
अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि,
लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही
और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने
महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं
गिड़गिड़ाईनहीं
न माँ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में
और न
कुरूसभा में
जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

‘द्रोणाचार्य’ शब्‍द का संधि-विच्‍छेद क्‍या है ?

निर्देश- नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: क्‍या परिचय दूं मैं अपना द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक कभी गौर किया है तुमने मेरा कोई नाम नहीं। द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को पिता को चाहिए था योद्धा और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं सबको स्‍तब्‍ध कर खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म। सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि, लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं गिड़गिड़ाईनहीं न माँ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में और न कुरूसभा में जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

Question 5:

निर्देश- नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए:
क्‍या परिचय दूं मैं अपना
द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी
सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक
कभी गौर किया है तुमने
मेरा कोई नाम नहीं।
द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को
पिता को चाहिए था योद्धा
और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे
यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं
सबको स्‍तब्‍ध कर
खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म।
सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस
अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि,
लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही
और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने
महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं
गिड़गिड़ाईनहीं
न माँ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में
और न
कुरूसभा में
जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

‘नि:सृत’ शब्‍द है-

निर्देश- नीचे दिए गए पंधाश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: क्‍या परिचय दूं मैं अपना द्रौपदी ----- पांचाली--------- कृष्‍ण ------------ या ज्ञसेनी सभी संज्ञाए विशेषण हैं या संबंध सूचक कभी गौर किया है तुमने मेरा कोई नाम नहीं। द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को पिता को चाहिए था योद्धा और धृष्‍टघुम्‍न के पीछे यज्ञ की अग्नि से औचक ही नि:सृत मैं सबको स्‍तब्‍ध कर खुद ही प्रयोजन बनती रही आजन्‍म। सुई की नोक के बराबर भूमि न पाने वालों के औरस अब तक मुझ पर उंगली उठाते थकते नहीं कि, लाखों लोगों की मृत्‍यु का कारण मैं रही और भी कई कहानियां बुल ली हैं उन्‍होंने महज इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं गिड़गिड़ाईनहीं न माँ के सम्‍मुख जब उन्‍होंने बॉंट दिया पॉंच बेटों में और न कुरूसभा में जहॉं पॉंच-पॉंच पतियों के बावजूद मैं अकेली पड गई-----------

Question 6:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।

समूह में से भिन्‍न शब्‍द है-

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।

Question 7:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।

सभी धर्मों के प्रति समभाव रखने से क्‍या होता है ?

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।

Question 8:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।

‘’जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म है’’ वाक्‍य का क्‍या तात्‍पर्य है-

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।

Question 9:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।

सभी धर्मों के प्रति कैसी भावना होनी चाहिए ?

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।

Question 10:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।

विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खोजने के लिए आवश्‍यक है _________ ।

निर्देश - नीचे दिए गए गधांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

विविध धर्म एक ही जगह पहुंचाने वाले अलग-अलग रास्‍ते हैं। एक ही जगह पहुंचने के लिए हम अलग-अलग रास्‍तों से चले तो इसमें दु:ख का कोई कारण नहीं हैं। सच पूछो तो जितने मनुष्‍य हैं उतने ही धर्म भी हैं। हमें सभी धर्मों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इसमें अपने धर्म के प्रति उदासीनता आती हो तो ऐसी बात नहीं, बल्कि अपने धर्म पर जो प्रेम है उसकी अन्‍धता मिटती है इस तरह वह प्रेम ज्ञानमय और ज्‍यादा सात्विक तथा निर्मल बनता है। बापू इस विश्‍वास से सहमत नहीं थे कि पृथ्‍वी पर एक धर्म हो सकता है या होगा। इसलिए वे विविध धर्मों में पाया जाने वाला तत्‍व खेजने की और इस बात को पैदा करने कि विविध धर्मावलंबी एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णुता का भाव रखें, कोशिश कर रहे थे। उनकी सम्‍मति थी कि संसार के धर्म-ग्रंथों को सहानुभूतिपूर्वक पढ़ना प्रत्‍येक सभ्‍य पुरूष और स्‍त्री का कर्तव्‍य है अगर हमें दूसरे धर्मों का वैसा आदर करना है जैसा हम उनसे अपने धर्म का कराना चाहते हैं, तो संसार के सभी धर्मों का आदरपूर्वक अध्‍ययन करना हमारा एक पवित्र कर्म हो सकता है।